बढ़ने लगी सिंदी व खजूर झाडूओं की मांग-कंटीले वृक्ष की छाल,घास से बनाई जाती है खजूर झाड़ू
नागपुर.(आनन्दमनोहर जोशी) दीपावली पर्व पारम्परिक साफ़,सफाई में जहाँ अत्याधुनिक मशीनों ने अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया है.लेकिन प्राकृतिक रूप से जंगल में उत्पन्न कँटीले खजूर, सिंदी झाड़ू वृक्ष की छाल,घास से अब भी झाड़ुओं का निर्माण छत्तीसगढ़ के पारधी आदिवासी समाज और सावनेर,छिंदवाड़ा मध्यप्रदेश के आदिवासी समाज के सैकड़ों सदस्य कर रहे है.
शहर के अनेक हिस्सों में यह परिवार तम्बु का निर्माण कर परिवार सहित अपने हाथों से झाड़ू का निर्माण कर रहे है.
जहाँ वर्ष 2010 में एक नग झाड़ू के भाव सात से आठ रुपये हुआ करते थे.आज वही झाड़ू तीस से चालीस रुपये प्रति नग हो चुकी है.
दुर्ग से नागपुर आये कंवरलाल पारधी ने बताया कि छत्तीसगढ़ के जंगल इलाके के कंटीले वृक्ष से घास,छाल तोड़कर वे अपने परिवार के साथ झाड़ू निर्माण अपने हाथों से कर रहे है.उनके साथ सम्पूर्ण नागपुर में करीब एक सौ परिवार के सदस्य यह काम कर रहे है .गत पाँच छः पीढ़ी से यह काम वे कर रहे है.
नागपुर में रेलवे, बस से भी रामाकोना, लोधीखेड़ा, केलवद ,सावनेर, मध्य प्रदेश के आदिवासी समाज के सदस्य भी खजूर, सिंधी झाड़ू का निर्माण करके नागपुर सहित विदर्भ में बेचते है.
हांलाकि वर्तमान समय में अत्याधुनिक मशीन,फूल झाड़ू,खर्राटा झाड़ू से उनके व्यवसाय पर भी बुरा असर पड़ने से 40 प्रतिशत तक व्यापार घट गया है.